मीराबाई की जीवनी
मीराबाई की जीवनी,
मीराबाई की गणना भारतीय इतिहास के महान संतों में की जाती है मीरा का जन्म राजस्थान में मेड़ता के निकट कुड़की ग्राम के प्रसिद्ध राज परिवार में 1498 ईस्वी में हुआ था वह एक कवयित्री होने के साथ भगवान श्री कृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम के लिए भी विख्यात है उनके कृष्ण के लिए समर्पित भजन पूरे भारत में बहुत लोकप्रिय है भजन और स्तुति की रचना कर भगवान के और समीप पहुंचने वाले संतों और महात्माओं में मीराबाई का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है एक साधु ने बचपन में उन्हें कृष्ण की मूर्ति दी और कहा जाता है कि इसी के साथ उनकी आजन्म कृष्ण भक्ति के शुरुआत हुई उनकी वह दिव्या प्रेमी के रूप में आराधना करती थीं ।।
लोगों के अनुसार संत मीराबाई एक आध्यात्मिक कवित्री थी और उत्तर भारतीय हिंदू परंपरा के अनुसार वह एक भक्ति संत थी संत मीराबाई दिन रात कृष्णा भक्ति में ही लीन रहती और कृष्ण को ही अपना पति मानती थी
इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था ये बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थी विवाह के थोड़े ही दिन के बाद इनके पति का स्वर्गवास हो गया था पति के परलोक वास के बाद उनकी भक्ति दिन प्रति दिन बढ़ती गई ये मंदिरों में जाकर वहां मौजूद कृष्ण भक्तों के सामने कृष्ण जी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थी
मीराबाई का कृष्ण भक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारिका और वृंदावन गई वह जहां जाती थी वहां लोगों का सम्मान मिलता था लोग इनको देवियों के जैसा यार और सामान देते थे
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