महर्षि पाणिनी
महर्षि पाणिनी संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे पाणिनी के बारे में माना जाता है कि उनका भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम इलाके में ईसा पूर्व चौथी सदी के आसपास हुआ था ये जगह अफगानिस्तान की सीमा के पास पेशावर के नजदीक है चीनी यात्री युवानच्वांग उत्तर पश्चिम से आते समय शालातुर गाँव में गए थे पाणिनी के गुरु का नाम उपवर्ष, पिता का नाम पणिन और माता का नाम दाक्षी था इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्त्र सूत्र है संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है अष्टाध्याई मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है इसमें प्रकारान्तर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है
उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान स्थान पर अंकित है इनका का जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर के करीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था
हालांकि पाणिनि के पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया, लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ 19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791 से 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनि के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली दुनिया के सभी भाषाओं के विकास में पानी नी के ग्रंथ का योगदान है
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उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान स्थान पर अंकित है इनका का जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर के करीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था
हालांकि पाणिनि के पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया, लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ 19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791 से 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनि के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली दुनिया के सभी भाषाओं के विकास में पानी नी के ग्रंथ का योगदान है
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