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Physics Question

                                         Physics Question

                                                 भौतिकी


Physics mcq question answer / physics details

 1 . मात्रक ( Unit )


👉🏿मात्रक ( Unit ) - किसी राशि के मापन के निर्देश मानक को मात्रक ( unit ) कहते हैं ।

👉🏿मात्रक दो प्रकार के होते हैं - मूल मात्रक ( fundamental unit ) एवं व्युत्पन्न मात्रक ( Derived Unit )

👉🏿मूल मात्रक की संख्या S.I. पद्धति में सात है , जिसे नीचे की सारणी में दिया गया है ।


                                                                       मात्रक ( Unit )




👉🏿वे सभी मात्रक , जो मूल मात्रकों की सहायता से व्यक्त किये जाते हैं , व्युत्पन्न मात्रक कहलाते हैं ।

👉🏿बहुत लम्बी दूरियों को मापने के लिए प्रकाश - वर्ष का प्रयोग किया जाता है अर्थात् प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है । 1 प्रकाश -वर्ष = 9.46 x 10^15 मी० होता है ।
पारसेक

👉🏿दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई पारसेक है । 1 पारसेक = 3.26 प्रकाश - वर्ष या , 1 पारसेक = 3.08 10^16 मीटर

👉🏿बल की C.G.S . पद्धति में मात्रक डाइन है एवं S.I. पद्धति में मात्रक न्यूटन है । 1 न्यूटन = 10^5 डाइन

👉🏿कार्य की C.G.S. पद्धति में मात्रक अर्ग है एवं S.I. पद्धति में मात्रक जूल है । 1 जूल = 10^7 अर्ग

👉🏿अदिश राशियाँ ( Scalar Quantities ) - वैसी भौतिक राशियाँ , जिनमें केवल परिमाण होता है, दिशा नहीं , उसे अदिश राशि कहा जाता है । जैसे - द्रव्यमान , चाल , आयतन , कार्य , समय , ऊर्जा आदि ।
नोट : विद्युत धारा ( Current ) , ताप ( Temperature ) , दाब ( Pressure ) सभी में दिशा है फिर भी ये सभी अदिश राशि है ।

👉🏿सदिश राशियाँ ( Vector Quantities ) - वैसी भौतिक राशियाँ , जिनमें परिमाण के साथ - साथ दिशा भी रहती है और जो योग केनिश्चित  नियमों के अनुसार जोड़ी जाती है उन्हें सदिश राशि कहते हैं । जैसे - वेग , विस्थापन , बल , त्वरण आदि ।

👉🏿दूरी ( Distance ) - किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लम्बाई की दूरी कहते हैं । यह एक अदिश राशि है । यह सदैव धनात्मक ( + ve ) होती है।

👉🏿विस्थापन ( Displacement ) - एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लम्बवत् ( न्यूनतम ) दूरी को विस्थापन कहते हैं । यह सदिश राशि है । इसका S I मात्रक मीटर है ।
विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है

👉🏿चाल ( Speed ) - किसी वस्तु द्वारा प्रति सेकेण्ड तय की गई दूरी को चाल कहते है । अर्थात चाल = दूरी/समय
Speed 
 यह एक अदिश राशि है । इसका S . I . मात्रक मी०/से० है

👉🏿 वेग ( Velocity ) - किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकेण्ड वस्तु द्वारा तय दूरी को वेग कहते है। यह एक सदिश राशि है । इसका S . I . मात्रक मी०/से० है ।

👉🏿त्वरण ( Acceleration ) - किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को ' त्वरण ' कहते है । यह एक सदिश राशि है । इसका S . I मात्रक m/sec^2 है ।
यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है , जिसे मंदन ( retardation ) कहते हैं ।

👉🏿वृत्तीय गति - जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है , तो उसकी गति को ' वृत्तीय गति ' कहते हैं । यदि वह एक समान चाल से गति करती है तो उसकी गति को ' एक समान वृत्तीय गति ' कहते हैं ।

 👉🏿समरूप वृत्तीय गति एक त्वरित गति होती है , क्योंकि वेग की दिशा प्रत्येक बिन्दु पर बदल जाती है ।

👉🏿कोणीय वेग ( Angular Velocity ) - वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत्त के केन्द्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकेण्ड में जितने कोण से घूम जाती है , उसे उस कण का कोणीय वेग कहते हैं । इसे प्रायः ( ओमेगा ) से प्रकट किया जाता है ।

यदि कण 1 सेकेण्ड में n चक्कर लगाता है तो w = n [ क्योंकि 1 चक्कर में कण 360° रेडियन से घूम जाती है ] अब यदि वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या r है और कण 1 सेकेण्ड में n चक्कर लगाता है , तो उसके द्वारा एक सेकेण्ड में चली गयी दूरी = वृत्त की परिधि × n = 2πrn यही उसकी रेखीय चाल Linear Speed होगी
अतः , रेखीय चाल = कोणीय चाल x त्रिज्या



👉🏿न्यूटन का गति - नियम ( Newton's laws of Motion ) - 

भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन् 1687 ई० में अपनी पुस्तक ' प्रिंसिपिया ' में सबसे पहले गति के नियम को प्रतिपादित किया था ।

👉🏿न्यूटन का प्रथम गति - नियम ( Newton's first law of Motion ) - यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है , तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह एक समान चाल से सीधी रेखा में चल रही है , तो वैसी ही चलती रहेगी , जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए ।

👉🏿प्रथम नियम को गैलिलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते है ।

👉🏿बाह्य बल के अभाव में किसी वस्तु की अपनी विरामावस्था या समानगति की अवस्था को बनाए रखने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं ।

👉🏿प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है ।

👉🏿बल की परिभाषा - बल वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है । बल एक सदिश राशि है । इसका S.I. मात्रक न्यूटन है ।

> जड़त्व के कुछ उदाहरण -

 ( i ) ठहरी हुई मोटर या रेलगाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं ।
( ii ) चलती हुई मोटरकार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं ।
( iii ) कम्बल को हाथ से पकड़कर डण्डे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं ।

👉🏿संवेग ( Momentum ) - किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं । अर्थात् संवेग = वेग × द्रव्यमान
 यह एक सदिश राशि है , इसका S.I. मात्रक → किग्रा० मी० / से० है ।




👉🏿न्यूटन का द्वितीय गति - नियम ( Newton's Second Law of Motion ) - किसी वस्तु के संवेग - परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाता होता है , तथा संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है । अब यदि आरोपित बल F, बल  की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो , तो न्यूटन के गति के दूसर नियम से F = ma
न्यूटन के दूसरे नियम से बल का व्यजंक प्राप्त होता है । नोट : प्रथम नियम दूसरे नियम का ही अंग है ।






 👉🏿न्यूटन का तृतीय गति - नियम - ( Newton's third Law of Motion ) - प्रत्येक क्रिया के बराबर , परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है ।

तीसरे नियम के कुछ उदाहरण -

 ( i ) बन्दूक से गोली चलाने पर , चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगना
 ( ii ) नाव से किनारे पर कूदने पर नाव को पीछे की ओर हट जाना
 ( iii ) रॉकेट को उड़ाने में

👉🏿संवेग संरक्षण का सिद्धान्त - यदि कणों के किसी समूह या निकाय पर कोई बाह्य बल नहीं लग रहा हो , तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है । अर्थात् टक्कर के पहले और बाद का संवेग बराबर होता है ।

👉🏿आवेग ( Impulse ) - जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है , तो बल तथा समय - अन्तराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते है ।

आवेग = बल X समय अन्तराल = संवेग में परिवर्तन

आवेग एक सदिश राशि है , जिसका मात्रक न्यूटन सेकेण्ड ( NS ) है , तथा इसकी दिशा वही होती है , जो बल की होती है ।
Centripetal Force 

👉🏿अभिकेन्द्रीय बल ( Centripetal Force ) - जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है , तो उस पर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है । इस बल को ही अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं । इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है । यदि कोई M द्रव्यमान का पिंड V चाल से R त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है , तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केन्द्र की ओर आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल F = MV^2/R होता है ।


Centrifugal Force 

👉🏿अपकेन्द्रीय बल ( Centrifugal Force ) - अजड़त्वीय फ्रेम ( Non - inertial frame ) में न्यूटन के नियमों को लागू करने के लिए कुछ ऐसे बलों की कल्पना करनी होती है , जिन्हें परिवेश में किसी पिण्ड से संबंधित नहीं किया जा सकता । ये बल छदम  बल या जड़त्वीय बल कहलाते हैं । अपकेन्द्रीय बल एक ऐसा ही जड़त्वीय बल या छदम बल है । इसकी दिशा अभिकेन्द्री बल के विपरीत दिशा में होती है । कपड़ा सुखाने की मशीन , दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेन्द्रीय बल के सिद्धान्त पर कार्य करती है ।

नोट - वृत्तीय पथ पर गतिमान वस्तु पर कार्य करने वाले अभिकेन्द्री बल की प्रतिक्रिया होती है , जैसे ' मौत के कुएँ ' में कुएँ की दीवार मोटर साईकिल पर अन्दर की ओर क्रिया बल लगाती है , जबकि इसका प्रतिक्रिया बल मोटर साइकिल द्वारा कुएँ की दीवार पर बाहर की ओर कार्य करता है । कभी - भी बाहर की ओर कार्य करने वाले इस प्रतिक्रिया बल को भ्रमवश अपकेन्द्रीय बल कह दिया जाता है , जो कि बिल्कुल गलत है ।

👉🏿 बल - आघूर्ण ( Moment of Force ) - बल द्वारा एक पिण्ड को एक अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को बल - आघूर्ण कहते हैं । किसी अक्ष के परितः एक बल का बल आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया - रेखा के बीच की लम्बवत् दूरी के गुणनफल के बराबर होता है । [ अर्थात् बल - आघूर्ण ( T ) = बल x आघूर्ण भुजा ] यह एक सदिश राशि है । इसका मात्रक न्यूटन मी० होता है ।

👉🏿सरल मशीन ( Simple Machines ) — यह बल - आघूर्ण के सिद्धान्त पर कार्य करती है । सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है , जिसमें किसी सुविधाजनक बिन्दु पर बल लगाकर , किसी अन्य बिन्दु पर रखे हुए भार को उठाया जाता है ; जैसे - उत्तोलक ( lever ) , घिरनी , आनत तल , स्क्रू जैक आदि ।

 👉🏿 उत्तोलक ( Lever ) - उत्तोलक एक सीधी या टेढ़ी दृढ़ छड़ होती है , जो किसी निश्चित बिन्दु के चारों ओर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है । उत्तोलक में तीन बिन्दु होते हैं
1 . आलंय ( Fulerum ) - जिस निश्चित बिन्दु के चारों ओर उत्तोलक की छड़  स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है , उसे आलंब कहते हैं ।
2 . आयास ( Effort ) - उत्तोलक को उपयोग में लाने के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है , उसे आयास कहते है ।
3 . भार ( Load ) - उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है , अथवा रुकावट हटायी जाती है , उसे भार कहते हैं ।

                                                         
   



> उत्तोलक के प्रकार -      उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं -


प्रथम श्रेणी का उत्तोलक - इस वर्ग के उत्तोलकों में आलंब F, आयास E तथा भार W के बीच में स्थित होता है । इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ 1 से अधिक , 1 के बराबर तथा 1 से कम भी हो सकता है । इसके उदाहरण है — कैंची , पिलाश , सिंडासी , कील उखाड़ने की मशीन , शीश झूला , साइकिल का ब्रेक , हैंड पम्प ।
द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक - इस वर्ग के उत्तोलक में आलंब F तथा आयास E के बीच भार W होता है । इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ सदैव एक से अधिक होता है । इसके उदाहरण हैं - सरौंता , नींबू निचोड़ने की मशीन , एक पहिए की कूड़ा ढोने की गाड़ी आदि ।
तृतीय श्रेणी का उत्तोलक - इस वर्ग के उत्तोलकों में आलंब F, भार W के बीच में आयास E होता है । इसका यांत्रिक लाभ सदैव एक से कम होता है । उदाहरण - चिमटा , किसान का हल , मनुष्य का हाथ ।
Centre of Gravity 

👉🏿गुरुत्वकेन्द्र ( Centre of Gravity ) - किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र , वह बिन्दु है जहाँ वस्तु का समस्त भार कार्य करता है , चाहे वस्तु जिस स्थिति में रखी जाए । वस्तु का भार गुरुत्व केन्द्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता ह । अतः गुरुत्व केन्द्र पर वस्तु के भार के बराबर उपरिमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं ।

संतुलन के प्रकार - संतुलन तीन प्रकार का होता है - स्थायी , अस्थायी तथा उदासीन

स्थायी सन्तुलन ( Stable Equilibrium ) - यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन स्थिति
से थोड़ा विस्थापित किया जाय और बल हटाते ही पुनः वह पूर्व स्थिति में आ जाए तो ऐसी संतुलन को ' स्थायी सन्तुलन ' कहते हैं ।
अस्थायी संतुलन ( Unstable Equilibrium ) - यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलनावस्था से थोड़ा - सा विस्थापित करके छोड़ने पर वह पुनः संतुलन की अवस्था में न आए तो इसे ' अस्थायी संतुलन ' कहते है ।
उदासीन सतुलन ( Neutral Equilibrium ) - यदि वस्तु को संतुलन की स्थिति से थोड़ा - सा विस्थापित करने पर उसका गुरुत्व केन्द्र ( G ) उसी ऊँचाई पर बना रहता है तथा छोड़ देने पर वस्तु अपनी नई स्थिति में संतुलित हो जाती है , तो उसका संतुलन ' उदासीन 'कहलाता है ।

स्थायी संतुलन की शर्ते — किसी वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है - ( i ) वस्तु का गुरुत्व - केन्द्र अधिकाधिक नीचे होना चाहिए ।
( ii ) गुरुत्व केन्द्र से होकर जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरनी चाहिए ।






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